रंडीबाजी क्यों करती हो?

अनिल अनूप 
कपड़े सँभालते हुये उसने दिन के अपने अंतिम ग्राहक से पूछा - साहेब! अपनी औलाद के बारे में कुछ बताओ। ग्राहक को अचरज हुआ। वह बैठ गया। 'तुमने क्यों पूछा?' 'बस ऐसे ही। अब्बू की याद आ गई।.... हरामी! तुम्हारी छुअन वैसी ही लगी मुझे। कहाँ थे अब तक?' नीमजाड़ा था लेकिन वह फिर से पसीने पसीने हो गया। उसमें इतनी अक्ल नहीं थी कि थोड़ी देर पहले के पसीने से इस पसीने का फर्क कर पाता। बहुत ही कमजोर आवाज़ में उसने पूछा - गाली देनी ज़रूरी थी? 'साहेब! मेरे ग़म में अब्बू जरूर चल बसे होंगे...बिना गाली के पूछ नहीं पाती। ... आप ने बताया नहीं?' 'बेटी है एक।' 'क्या उमर होगी?' 'बारह ... क्यों?' उसने नाक सुड़की और मुँह दूसरी ओर कर लिया - रंडीबाजी क्यों करते हो? एक बेटी के बाप हो... उसका चेहरा लाल हो गया। वह चिल्लाया - औकात में रहो! हालाँकि भीतर कुछ जल उठा था जिसे उसने बची हुई दारू को गटक बुझाने की कोशिश की। 'हमारी औकात तो आप से है जान! ...बुरा मत मानो। चार बरस हो गये, बारह की ही थी तो यहाँ उठा लाई गई थी।... तुम्हारी जोरू ....' उसने बात अधूरी छोड़ दी। 'गुजर गई... इसीलिये तो यहाँ....' ग्राहक ने भी बात अधूरी छोड़ दी। लेकिन दोनों पूरी तरह समझ गये। उसने वेश्या के जिस्म को नई नज़र से निहारा और पूछ बैठा - तुम तो बहुत सयानी लगती हो, मेरा मतलब सोलह की नहीं... घड़ी से ही पता चल रहा था कि शाम ढल चुकी थी। मेकअप पुता चेहरा बल्ब की पीली रोशनी में और पीला हो गया, उसने इशारे से गद्दे का एक कोना उठाने को कहा। ग्राहक के हाथ में गोलियों का एक पत्ता आ गया। 'क्या है यह?' 'वही...' वह सिसकी थी - वही गोली खा कर हम ऐसी हो जाती हैं। इसे किसान अपने जानवरों को मोटा करने के लिये खिलाते हैं। सोचो हम खायेंगी तो ....वेश्या ने उघाड़ दिया। उसे लगा कि नज़रों में हाथ हैं जो लुंज पुंज हो गये हैं। पापा को चौंकाने को बेटी का आँख मूँद लेना कौंध गया। आँखें बन्द करते वह चिल्लाया - शर्म कर बेशरम! दरवाजे पर ठकठक हुई। बाहर से किसी स्त्री ने पुकारा था - ओये! फारिग हो गई के? एक मोटा असामी आया है। वेश्या ने दरवाजा खोला और फुफकारते हुये बोली - यह मेरी इबादत का वक़्त है। जबरी की तो .... 'गाहक तो अन्दर बैठ्ठा है!' 'गाहक नहीं, वह मेरा बापवाला है...अपने भँड़ुओं से कह दो आज का टैम खत्तम, कल आयें।'

वेश्या ने उघाड़ दिया। उसे लगा कि नज़रों में हाथ हैं जो लुंज पुंज हो गये हैं। पापा को चौंकाने को बेटी का आँख मूँद लेना कौंध गया। आँखें बन्द करते वह चिल्लाया - शर्म कर बेशरम! दरवाजे पर ठकठक हुई। बाहर से किसी स्त्री ने पुकारा था - ओये! फारिग हो गई के? एक मोटा असामी आया है। वेश्या ने दरवाजा खोला और फुफकारते हुये बोली - यह मेरी इबादत का वक़्त है। जबरी की तो .... 'गाहक तो अन्दर बैठ्ठा है!' 'गाहक नहीं, वह मेरा बापवाला है...अपने भँड़ुओं से कह दो आज का टैम खत्तम, कल आयें।'

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