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और मैने वहां जाना छोड दिया •••••

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  और मैने वहां जाना छोड दिया •••••• अनिल अनूप बात तब की है, जब मेरी नई-नई शादी हुई थी। जैसा आमतौर पर स्वस्थ रिश्तों में होता है (कम से कम मैं मानता हूं) कि मैंने अपनी नई-नवेली पत्नी से बीते दिनों की तमाम भली-बुरी यादें और आदतें साझा करनी शुरु कर दीं। मेरा अतीत कुछ ऐसा था कि पत्नी के चेहरे पर मुस्कान कम और ताने-उलाहने अधिक दिखते थे। कोठों का ज़िक्र आया तो पत्नी चौंक गई। एक अजनबी, जिसे अब पति का दर्जा मिल चुका था, जिसके साथ जीवन गुजारना था, मजबूरी भी हो सकती है, फिर भी उसे स्वीकार करना था। उसकी आदतों को भी स्वीकार करना था। उसकी बुरी आदतें सुधारने का हर संभव प्रयत्न करना था। ऐसे तमाम निश्चयों-फैसलों के साथ ही नई-नवेली गृहस्थी की गाड़ी रफ्तार पकड़ती है। लिहाजा, कोठों का जिक्र आने पर पत्नी की आंखें फटीं, पूरी कहानी सुनी, और फिर अपनी ज़ुबान खोली। पत्नी की ज़ुबान खुली नहीं कि मेरे माथे पर बल पड़ गया। मैंने तो पूरी सच्चाई से अपना भला-बुरा अतीत बखान किया था। नतीजा ये निकलेगा, मैंने कभी सोचा भी न था। पत्नी की ख्वाहिश सुनकर मेरी तो बोलती बंद हो गई, सन्नाटा छा गया। सोच-विचार के बाद एक दिन पत्न...