वृत्ति भी और प्रवृत्ति भी है वेश्यावृत्ति

अनिल अनूप 
भारत में वैश्या वृत्ति भी है और प्रवृत्ति भी यहाँ दो प्रकार का देह व्यापार हो रहा है एक तो दहेज़ के नाम पर देह व्यापार जिसमें पुरुष वेश्याएं अपनी देह बेच रही हैं और दूसरे प्रकार का देह व्यापार कि जिसमें नारी देह सामान की तरह खरीदने का अपमान है। पहले पुरुष वेश्याओं की बात हैं .---- दहेज़ निश्चय ही "देह व्यापार " है और दहेज़ ले कर शादी करनेवाले दूल्हे / पति "पुरुष वैश्या". दहेज़ वैश्यावृत्ति है और दहेज़ की शादी से उत्पन्न संताने वैश्या संतति. याद रहे वैश्या की संताने कभी क्रांति नहीं करती तबले सारंगी ही बजाती हैं .लेकिन ताली दोनों हाथ से बज रही है. जब तक सपनो के राजकुमार कार पर आएंगे पैदल या साइकिल पर नहीं तब तक दहेज़ विनिमय होगा ही . जबतक लड़कीवाले लड़के के बाप के बंगले कार पर नज़र रखेंगे तब तक लड़केवाले भी लड़कीवालों के धन पर नज़र डालेगे ही. इस तरह की वैश्यावृत्ति से आक्रान्त समाज में अब लडकीयाँ अपने थके हुए माँ -बाप की गाढ़ी कमाई पुरुष देह को अपने लिए खरीदने के लिए खर्च करने को मौन /मुखर स्वीकृति देती हैं ...यदि स्वीकृति नहीं भी हो तो विरोध तो नहीं ही करती हैं। लडकीयाँ दहेज़ से लड़ना ही नहीं चाह रहीं। सुविधा की चाह उन्हें संघर्ष की राह से बहुत दूर ले आई है। देश में दूसरे तरह का देह व्यापार स्त्री देह व्यापार है। जिस देश में साल में दो बार नौ -नौ दिन नौ देवी जैसे पर्व मनाये जाते हों ...अस्य नार्यन्ती पूज्यन्ते जैसे जुमले गुनगुनाये जाते हों गार्गी, सीता, यशोदा, अन्नपूर्णा, सरस्वती के संस्कारों की विराशत के देश में आज भी विश्व के सबसे बड़े देह व्यापार के बाजार हैं वह भी वहां जहां दुर्गा पूजा की दीवानगी है यानी कलकत्ता जी हाँ में कोलकाता के सोना गाछी और बहू बाज़ार नामक रेड लाईट एरिया की बात कर रहा हूँ। विडंबना यह कि मानवाधिकार के लिए छाती पीटने के आदी वामपंथी यहाँ तीस साल राज्य कर के गुजर गए और अब एक महिला ममता का राज्य है। क्या आपको पता है कि विश्व की हर सातवीं बाल वैश्या भारत की बेटी है। देश में सुबोध लडकीयाँ मुम्बई -दिल्ली जैसे शहरों में खुलेआम आपने आपको विभिन्न बहानो और आवरणों में बेच रही हैं और अबोध गरीब लडकीयाँ खुले-आम खरीदी-बेची जा रही हैं।
कभी अरबी शेख से शादी के नाम पर कभी शादी के नाम पर और अक्सर "गायब हो गयी" के नाम पर लडकीयाँ देह बाज़ार में भेजी जा रही हैं। फिल्म "तलाश" में करीना का एक संवाद है----" वेश्यावृति अपराध है साहब हमरे देश में, जो अपराध करता है वो खुद अपनी गिनती कैसे करवाए? और जिसकी गिनती नहीं वो अपने गायब होने की रिपोर्ट कैसे कराये? हजारो लडकिया ऐसे ही गायब हो जाती है साहब और किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।" कुल मिला कर भारत में सामाजिक संस्तुति से होता पुरुष वेश्याओं का देह व्यापार यानी "दहेज़" और स्त्री वेश्याओं की बढ़ती संख्या इस राष्ट्र को कलंक की कगार पर ले आये हैं। ऐसे में क्रान्ति की संभावना कोई नहीं क्योंकि याद रहे --वैश्या संताने क्रांति नहीं करती,...नाच बलिये करते हैं तबले-सारंगी ही बजाते हैं।"
--पाकिस्तान की "जनरल रानी"
पाकिस्तान ने आजादी के बाद से ही दूसरे देशों पर निर्भर होना शुरू कर दिया था शायद इसीलिये वो अब तक भी अपने बलबूते पर खड़ा नहीं हो सका है. पाकिस्तान में हमेशा से ही नेतृत्व की कमी रही जिसके चलते वहां फौजी शासन भी लगा. फौजी शासन का दौर ही पाकिस्तान के लिये सबसे बुरा दौर था. उस दौर में पाकिस्तान में भ्रष्टाचार ने अपने कदम जमाये, सत्ता में काबिज़ लोगों ने निरंकुशता अपनाई जिसके चलते पूरा देश कई बार मार्शल लॉ में जीता था. इस दौर में एक महिला तेजी से उभरी जो ‘जनरल रानी’ के उपनाम से मशहूर हुई. इस महिला का नाम था अकलीम अख्तर.
जनरल रानी पाकिस्तान की उस दौर की सबसे शक्तिशाली महिला थी. वो एक वेश्यालय की मालकिन और फौजी जनरल तानाशाह याहया खान की बेहद करीबी दोस्त थी.
उस दौर में उसे पाकिस्तान की सबसे पावरफुल महिला कहा जाता था. अकलीम का जन्म 1931 में पंजाब प्रांत के गुजरात में हुआ था. उसे जनरल याहया खान की रखैल कहा जाता था. वो याहया खान, पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो और मुस्तफा खार के लिये लड़कियों की डांस पार्टी का इंतजाम करती थी. ये भी कहा जाता है कि वो इनको लडकियां भी सप्लाय करती थी. आज हम आपको जनरल रानी की पूरी कहानी बताएंगे.
अपने एक इंटरव्यू में जो कि उसने 2001 में दिया था में बताया कि अपने पति को कद्दावर लोगों के साथ देखकर उसे कुछ-कुछ होता था. वो खुद भी अच्छी पोजीशन पर जाना चाहती थी. लेकिन उसकी चाहत ऐसे पूरी नहीं हो सकती थी. अकलीम बचपन से ही दबंग किस्म की लड़की थी उसे मर्दजात की जूती बनना कभी पसंद नहीं था.
एक रोज़ अपने पति के साथ घूमने गयी अकलीम ने पति के नाराज़ होने के बाद बाजार में अपना बुर्का उतार फेंका. इसके बाद दोनों के बीच कभी सुलह नहीं हो पायी और कानूनी कारवाई के बाद दोनों ने तलाक़ ले लिया. इसके बाद उसकी मुलाक़ात याहया खान से हुई और दोनों के बीच रिश्ता बनने लगा.
इसके बाद उसने पावरफुल लोगों से संबंध बनाने शुरू किये. वो रोज़ कराची, लाहौर और रावलपिंडी के नाइट क्लब जाती. वो ऐसे लोगों को लडकियां सप्लाय करने लगी जो अपनी बीवियों से तंग आ गये थे. वो ऐसे लोगों के लिए डांस पार्टी रखती और सुन्दर लड़कियों को चुनती जो पैसे की तंगी झेल रही हों.
इसके बाद वह वेश्यावृत्ति के धंधे में उतर गई. वह सारा कामकाज रावलपिंडी के घर से देखती थी. वह अपने पति से सरकार में होने वाले कामकाज के बारे सुन चुकी थी. इस सबके बावजूद उसने महिला के तौर पर अपना आत्मसम्मान बनाए रखा. जनरल याहया खान से उसकी पहली मुलाकात खैरियां में पार्टी के दौरान हुई. उन्होंने बताया कि याहया खान से मिलने पर उन्होंने गुजरात आने का न्यौता दिया. बस यहीं से याहया और उनके बीच एक जादुई सा रिश्ता बन गया. दोनों के बीच गहरे रिश्ते होने के कारण लोग अकलीम को उनकी रखैल कहने लगे थे. इस नजदीकी के लिए उसे जनरल रानी के नाम से पुकारा जाने लगा.
इसके बाद याहया खान ने पाकिस्तानी सरकार का तख्ता पलट दिया और मार्शल लॉ (1969-1971) लगा दिया. इसी दौर में जनरल रानी पाकिस्तान की सबसे ताकतवर महिला बन गयी. उसका दखल सरकार के कामकाज में भी था. अकलीम ने बताया कि याहया की सबसे बड़ी कमजोरी शराब, लड़कियां और वो खुद थी.
याहया नूरजहां का दीवाना था. एक बार जनरल ने उनके बर्थडे पर सिंगर लाने की फरमाइश कर दी. तब जनरल रानी के कहने पर नूरजहां ने पार्टी में गाना गया और डांस भी किया. भले नूरजहां याहया के साथ रिश्ते से इनकार करें, लेकिन अकलीम जानती थी कि उनके रिश्ते किस तरह के थे.
जनरल रानी ने पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो और मुस्तफा खार के बारे में भी चौंकाने वाले खुलासे किये. उन्होंने बताया था कि दोनों नेता उनके सामने भीख मांगते थे कि वे याहया खान से उनकी मुलाकात करवा दें. अकलीम कहती थीं कि जितनी पार्टीयां उन्होंने भुट्टो और खार के लिए दी थीं उतनी शायद जनरल याहया के लिए भी न दी हों. जुल्फिकार बेनजीर भुट्टो के पिता थे, जबकि पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार मुस्तफा खार की भतीजी हैं.
1971 में चुनाव होने के बाद भुट्टो सत्ता में आए. उसके बाद जनरल रानी के दिन बदल गए. भुट्टो ने रानी को घर में ही नजरबंद करवा दिया. उनके सारे फोन कनेक्शन कटवा दिये गए. 1977 में जिया उल हक के तख्ता पलटने के बाद उन्हें आजाद कराया गया. लेकिन तब तक वह अपनी सारी जायदाद और रुतबा खो चुकी थी. कभी एक इशारे पर ट्रांसफर रुकवाने वाली, प्रमोशन करवाने वाली महिला के आखिरी दिन बड़ी ही मुफलिसी में बीते. 2002 में 70 साल की उम्र में ब्रेस्ट कैंसर से उनकी लाहौर में मौत हो गई.

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