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पतिता, अभिशाप या वरदान.. ..: वृत्ति भी और प्रवृत्ति भी है वेश्यावृत्ति

पतिता, अभिशाप या वरदान.. ..: वृत्ति भी और प्रवृत्ति भी है वेश्यावृत्ति : अनिल अनूप  भारत में वैश्या वृत्ति भी है और प्रवृत्ति भी यहाँ दो प्रकार का देह व्यापार हो रहा है एक तो दहेज़ के नाम पर देह व्यापार जिसमें पु...

रंडीबाजी क्यों करती हो?

अनिल अनूप  कपड़े सँभालते हुये उसने दिन के अपने अंतिम ग्राहक से पूछा - साहेब! अपनी औलाद के बारे में कुछ बताओ। ग्राहक को अचरज हुआ। वह बैठ गया। 'तुमने क्यों पूछा?' 'बस ऐसे ही। अब्बू की याद आ गई।.... हरामी! तुम्हारी छुअन वैसी ही लगी मुझे। कहाँ थे अब तक?' नीमजाड़ा था लेकिन वह फिर से पसीने पसीने हो गया। उसमें इतनी अक्ल नहीं थी कि थोड़ी देर पहले के पसीने से इस पसीने का फर्क कर पाता। बहुत ही कमजोर आवाज़ में उसने पूछा - गाली देनी ज़रूरी थी? 'साहेब! मेरे ग़म में अब्बू जरूर चल बसे होंगे...बिना गाली के पूछ नहीं पाती। ... आप ने बताया नहीं?' 'बेटी है एक।' 'क्या उमर होगी?' 'बारह ... क्यों?' उसने नाक सुड़की और मुँह दूसरी ओर कर लिया - रंडीबाजी क्यों करते हो? एक बेटी के बाप हो... उसका चेहरा लाल हो गया। वह चिल्लाया - औकात में रहो! हालाँकि भीतर कुछ जल उठा था जिसे उसने बची हुई दारू को गटक बुझाने की कोशिश की। 'हमारी औकात तो आप से है जान! ...बुरा मत मानो। चार बरस हो गये, बारह की ही थी तो यहाँ उठा लाई गई थी।... तुम्हारी जोरू ....' उसने बात अधूरी छोड़ द...

वृत्ति भी और प्रवृत्ति भी है वेश्यावृत्ति

अनिल अनूप  भारत में वैश्या वृत्ति भी है और प्रवृत्ति भी यहाँ दो प्रकार का देह व्यापार हो रहा है एक तो दहेज़ के नाम पर देह व्यापार जिसमें पुरुष वेश्याएं अपनी देह बेच रही हैं और दूसरे प्रकार का देह व्यापार कि जिसमें नारी देह सामान की तरह खरीदने का अपमान है। पहले पुरुष वेश्याओं की बात हैं .---- दहेज़ निश्चय ही "देह व्यापार " है और दहेज़ ले कर शादी करनेवाले दूल्हे / पति "पुरुष वैश्या". दहेज़ वैश्यावृत्ति है और दहेज़ की शादी से उत्पन्न संताने वैश्या संतति. याद रहे वैश्या की संताने कभी क्रांति नहीं करती तबले सारंगी ही बजाती हैं .लेकिन ताली दोनों हाथ से बज रही है. जब तक सपनो के राजकुमार कार पर आएंगे पैदल या साइकिल पर नहीं तब तक दहेज़ विनिमय होगा ही . जबतक लड़कीवाले लड़के के बाप के बंगले कार पर नज़र रखेंगे तब तक लड़केवाले भी लड़कीवालों के धन पर नज़र डालेगे ही. इस तरह की वैश्यावृत्ति से आक्रान्त समाज में अब लडकीयाँ अपने थके हुए माँ -बाप की गाढ़ी कमाई पुरुष देह को अपने लिए खरीदने के लिए खर्च करने को मौन /मुखर स्वीकृति देती हैं ...यदि स्वीकृति नहीं भी हो तो विरोध तो नहीं ही करती ...

इज्जत के लिए घर में बैठ सकती पेट के लिए नहीं•••••

अनिल अनूप  मेरी जैसी कई औरतों को अपना शरीर बार-बार बेचना पड़ता है।’’ एक औरत की जुबान से पहली बार ऐसा सुन कर मैं झिझक गया। सपना ने बेझिझक आगे कहा, ‘‘पेट के लिए करना पड़ता है। इज्जत के लिए घर में बैठ सकती हूं। लेकिन…’’ इसके बाद वह चुपचाप एक गली में गयी और गुम हो गयी। देश के कोने-कोने से हजारों मज़दूर सपनों के शहर मुंबई आते हैं। लेकिन उनके संघर्ष का सफर जारी रहता है। इनमें से ज्यादातर मज़दूर असंगठित क्षेत्र से होते हैं। सुबह-सुबह शहर के नाकों पर मज़दूर औरतें भी बड़ी संख्या दिखाई देती हैं। इनमें से कइयों को काम नहीं मिलता। इसलिए कइयों को ‘सपना’ बनना पड़ता है। तो क्या ‘‘पलायन’’ का यह रास्ता ‘‘बेकारी’’ से होते हुए ‘‘देह-व्यापार’’ को जाता है? शहर के उत्तरी तरफ, संजय गांधी नेशनल पार्क के पास दिहाड़ी मज़दूरों की बस्ती है। यहां के परिवार स्थायी घर, भोजन, पीने लायक पानी और शिक्षा के लिए जूझ रहे हैं। लेकिन विकास योजनाओं की हवाएं यहां से होकर नहीं गुजरतीं। इन्होंने अपनी मेहनत से कई आकाश चूमती इमारतें बनायी हैं। ख़ास तौर से नवी मुंबई की तरक्की के लिए कम अवधि के ठेकों पर अंगूठा लगाया है। इन्ह...

बाछडा समाज की देहमण्डी : मंदसौर

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-अनिल अनूप  जिस तरह देश में मंदसौर अफीम उत्पादन तस्करी के लिए मशहूर है उसी तरह नीमच मंदसौर रतलाम के कुछ खास इलाके भी बाछड़ा समाज की देह मंडी के रुप में कुख्यात है। जो वेश्यावृत्ति के दूसरे ठिकानों की तुलना में इस मायनें में अनूठे हैं कि यहां सदियों से लोग अपनी ही बेटियों को इस काम में लगाए हुए हैं। इनके लिए ज्यादा बेटियों का मतलब है ज्यादा ग्राहक! ऐसे में जब आप किसी टैक्सी वाले से नीमच चलने के लिए कहते हैं तो उसके चेहरे में एक प्रश्नवाचक मुस्कुराहट स्वत: तैर आती है। इस यात्रा में अनायास ही ऐसे दृश्य सामने आने लगते हैं, जो आमतौर पर सरेराह दिनदहाड़े कम से कम मप्र में तो कहीं नहीं देखने को मिलते। हां, सिनेमा के रुपहले पर्दे पर जरूर कभी- कभार दिख रहते हैं। पलक झपकते ही मौसम की शर्मिला टैगोर चांदनी बार की तब्बू , चमेली की करीना आंखों के सामने तैरने लगती हैं। महू- नीमच राजमार्ग से गुजरते हुए जैसे ही मंदसौर शहर पीछे छूटता है। सड़क किनारे ही बने कच्चे-पक्के घरों के बाहर अजीब सी चेष्टाएं दिखने लगती हैं। वाहनों विशेषकर ट्रक, कारों को रुकने के इशारे करती अवयस्क, कस्बाई इत्र से महकती लड़किय...

ब्यूटी और मसाज पार्लर की आड़ में देहब्यापार (अंतिम भाग)

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भारतीय समाज की हमेशा से ही यह खासियत रही है कि यहां पुरुषों को महिलाओं से ज्यादा शक्तिशाली और उनसे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होने का सौभाग्य प्राप्त करता खासियत रही है कि यहां पुरुषों को महिलाओं से ज्यादा शक्तिशाली और उनसे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होने का सौभाग्य प्राप्त करता आया है. यूं तो प्रकृति ने पहले से ही महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा शारीरिक रूप से कमजोर बनाया है लेकिन सामाजिक और पारिवारिक क्षेत्र में उन्हें पुरुषों की तुलना में किस कदर कमजोर बना दिया गया है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जहां कहीं भी किसी महिला पर अत्याचार होता है उसका कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में पुरुष ही होता है. पारिवारिक क्षेत्र में देखें तो विवाह से पहले उसे अपने पिता और भाई के सामने सिर झुका कर रहना पड़ता है और विवाह के पश्चात पति की आज्ञा मानना और ससुरालवालों की सेवा करना ही उसका एकमात्र धर्म रह जाता है. वहीं जब सामाजिक क्षेत्र पर नजर डाली जाए तो हालात इससे भी कहीं ज्यादा कष्टकारी नजर आते हैं. बलात्कार, यौन शोषण, शारीरिक हिंसा, आदि कुछ ऐसे बेहद जघन्य अपराध है जो पुरुष द्वारा महिलाओं के...

ब्यूटी और मसाज पार्लर की आड़ में भटकती पीढी (1)

मसाज पार्लर की राह हमारे युवा वर्ग को कहां तक ले जाएगी इसके बारे में अनुमान लगाना कठिन है. कहीं ये रास्ता उस नर्क का दर्शन कराती है जिसकी कल्पना मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं और कहीं इस रास्ते पर चलकर कई लोग अपना सबकुछ खो चुके होते हैं. सांस्कृतिक पतन की ओर बढ़ते देश को ऐसी कुवृत्तियां बहुत तेजी से चोट पहुंचा रही हैं. केवल पैसे और क्षणिक सुख के लिए पूरी पीढ़ी की बर्बादी कहां तक उचित है. कोई बेरोजगारी की वजह से अपना राज्य छोड़कर दिल्ली आता है. एक दिन एक दैनिक अखबार में विज्ञापन देख कर मसाज पार्लर में काम के लिए संपर्क करता है. उसे काम भी मिल गया लकेिन पहले ही दिन जब वह काम पर गया, एक अधेड़ महिला का पहनावा और व्यवहार देखकर उसके पांव तले जमीन खिसक गई. मसाज के नाम पर वहां उपस्थित महिला ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश की. मना करने पर उसने कहा कि पार्लर से इसी काम के तीन हजार रुपए में बात हुई है. ऐसा न किया तो शिकायत करूंगी. बेचारा काम की तलाश में यहां आया था और काम छोड़कर वापस बेरोजगार हो गया. लोग आज पैसे कमाने के लिए किसी भी हद तक गुजर सकते हैं और ऐसे में वेश्यावृत्ति के द...

भारतीय संस्कृति में सेक्स (अंतिम भाग)

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अनिल अनूप  मस्तिष्क में यह विचार रखे कि यह एक यज्ञ कर्म के समान है जिसमें पत्नी का जनन स्थान ही यज्ञ की वेदी है, उसकी इस वेदी रूपी जनन स्थान के बाह्म लोम यज्ञ में बिछाने वाले मृग चर्म है और जिस प्रकार यज्ञ कर्म में स्त्रुवा द्वारा घृत है, उसी प्रकार मैथुन-कर्म में पुरूष का लिंग ही स्त्रुवा है जिसके द्वारा स्त्री वेदी रूपी जननी स्थान के अन्दर शुक्र की हवि दी जाती है। इन यौन रूपी पवित्र यज्ञ का फल सन्तान के रूप में मनुष्य को प्राप्त होता है, क्योंकि यज्ञ का कोई न कोई फल सन्तान के रूप में मनुष्य को प्राप्त होता है, क्योंकि यज्ञ का कोई न कोई फल अवश्य मिलता है। अतः स्पष्ट है कि भारतीय संस्कृति में सेक्स को कभी वर्जित नहीं माना गया बल्कि उसको एक पवित्र यज्ञ के समान सम्पन्न करने की शिक्षा प्रदान की जाती है। सेक्स अपने इस शुद्व स्वरूप में ही हमारी संस्कृति और सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित रखते हुए उन्हें पुनजीवित करने कि क्षमता रखता है। वर्तमान में हमारे समाज का एक बहुत छोटा हिस्सा ही उपरोक्त शास्त्रीय सेक्स से परिचित है। शास्त्रीय अर्थात हमारी संस्कृति के पवित्र शास्त्रों में उल्ले...

भारतीय संस्कृति में सेक्स (भाग2)

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अनिल अनूप  इस प्रकार स्पष्ट है कि जहां तक सांस्कृतिक मूल्यों का सवाल है तो सेक्स को भी यहां प्रथक मूल्य का सवाल है तो सेक्स को भी यहां प्रथक मूल्य का मान प्राप्त है जिसे मानव जीवन में अनावश्यक मानने के साथ ही परम मूल्य मोक्ष के सहायतार्थ रूप में भी अनिवार्य रूप से आवश्यक है। भारतीय दार्शनिक और सांस्कृतिक मूल्यों में सिद्वान्त पुरूषार्थचतुष्ट के चारों पुरूषार्थो-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में मोक्ष साध्य मूल्य है और धर्म, अर्थ के साथ साथ काम को भी साघन मूल्य के रूप में स्वीकार किया गया है। इस प्रकार भारतीय दार्शनिक दृष्टि से भोग और मोक्ष अभ्युदय और निःश्रेयस दोनों को ही मानव जीवन के लिए आवश्यक माना गया है। वास्तव में देखा जाय तो भारतीय दार्शनिक विचारधारा में अन्य तीन पुरूषार्थ मानव जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन काम पुरूषार्थ मानव जाति के अस्तित्व के बिना इसके मनुष्य जाति का अस्तित्व ही नहीं रहता और मानव अस्तित्व के बिना जीवन में मानव मूल्यो की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसीलिए भारतीय संस्कृति की यह मान्यता है कि पितृ-ऋृण की मुक्ति के लिए काम को मानना आवश्यक है, क्योंकि पितृ- ऋृण...

भारतीय संस्कृति में सेक्स -1भाग

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अनिल अनूप  भारतीय परम्परा में सेक्स के विषय को लेकर खुली चर्चा करने से परहेज किया जाता रहा है, क्योंकि भारतीय समाज इस पूर्वमान्यता से ग्रसित है कि सेक्स एक ऐसा विषय है जो हमारी संस्कृति और सांस्कृतिक मूल्यों को आघात पहुंचाता है। वस्तुतः भारतीय समाज सेक्स शब्द को ही पाप, अपराध और गंदगी का सूचक मानता है। यदि कोई दुस्साहस करके इस विषय को स्पष्ट करना या समझना चाहता है तो उन दोनो पर ही कामुक और अश्लील और पापी की मोहर लगा दी जाती है, जबकि हकीकत यह है कि सेक्स विषय न तो संस्कृति और सांस्कृतिक मूल्यों पर कुठाराघात करता है और न ही समाज की युवा पीढी की दिशा भ्रमित करता है बल्कि सेक्स से संबंधित ज्ञानवर्द्धक विचार-विमर्श और सेक्स शिक्षा हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को सुदृढ करने के साथ ही भावी पीढी को नई दिशा प्रदान करते हुए उन्हें अनुचित यौन आचरण करने से रोक सकता है। अतः सेक्स के संबंध में समाज की उक्त पर्वमान्यता पूर्णतया निर्दोष नहीं है, क्योंकि हमारी संस्कृति में यौन व्यहवार को कभी भी अनुचित नहीं ठहराया गया, बल्कि हमारी संस्कृति में यह पूर्ण स्पष्ट है कि व्यक्ति के सर्वागीण विकास में यौ...

हार गई हिम्मत जीत गया डर....

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-अनिल अनूप  उस दिन हिम्मत और डर की गज़ब लड़ाई हुई थी। सुबह उठ के घर के सारे काम किये, बिना किसी को ये एहसास दिलाए की आज उन्हें जाना था किसी को खुद को समर्पित करने, समाज के बंधन तोड़ने। उनके मन में हज़ार संशय थे… फिर भी दिल की सुनी और अपने मानवीय अधिकार के लिए कदम बढ़ाये। घर और समाज की दहलीज़ लाँघ आई और वहां पहुंची जहाँ उनकी ज़िन्दगी के रंग थे… उनसे मिली जिनके लिए सब छोड़ आई थीं, नज़रें मिलते ही डर हार गया और हिम्मत जीती उस पल। हिम्मत ने उस लंगड़ी बाल विधवा को दोबारा श्रृंगार दिया। एक बार फिर उन्होंने अपने होंठों पे लाली लगाई। रंगों को पहना। चांदी की चूड़ियां काँच में बदल गई थीं। पैरों में पायल, मांग में सिन्दूर, माथे पे बिंदिया, हज़ार अरमान लिए गेहुई रंग की अपाहिज़ बाल विधवा फिर दुल्हन सी सजी थी। दोनों ने रिक्शा किया और चल पड़े कानून से मान्यता लेने कचहरी… कोर्ट मैरिज करने। श्रृंगार के समय जो डर चित्त पड़ा था घर से निकलते ही उठ खड़ा हुआ और करने लगा द्वंदयुद्ध हिम्मत से। कोई देख ना ले इस डर से रिक्शे की छत से छाँव करवा ली। घूँघट भी दे दिया था डर ने उस ब्राह्मण निरीह को। धड़कने भूकंप बनी थीं...

सीखती हैं गलतियां करके

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-अनिल अनूप  मुझे सड़कों पर चाऊमीन और बिरयानी खाने वाली लड़कियां बहुत बुरी लगती हैं। सड़क पर खड़े होकर वह क्या दिखाना चाहती हैं कि हम भी ऐसे खा सकते हैं। अरे भई गोलगप्पे और टिक्की तक तो ठीक है, लेकिन अब वो बिरयानी भी सड़क पर खड़े होकर खाएंगी, ये तो बदतमीजी है। पैक कराकर नहीं ले जा सकतीं। घर पर तमीज से जाकर खाएं।” इस बात के समर्थन में कई पुरुष मुस्कुराते हुए दिखे और कह रहे थे- “हां बात तो ठीक है।” जिस अंदाज में वह यह बातें बोल रहे थे, लग रहा था कि उनका बस चले तो लड़कियों को खाना भी अपने हिसाब से ही दें। कुछ लोग कहते हैं कि सशक्तीकरण के नाम पर आजकल लड़कियां कुछ भी कर रही हैं। ‘महिला सशक्तीकरण’ पर आजकल चर्चाएं खूब हो रही हैं। बड़े-बड़े मंचों पर हो रही हैं। बड़े-बड़े लोग कर रहे हैं। वह कुछ चिंतित से दिखते हैं कि महिलाएं भी आगे बढ़ें। लेकिन ये लोग महिला सशक्तीकरण की बातें तभी तक करना पसंद करते हैं, जब तक महिलाओं की आजादी इनके मुताबिक तय हो रही हो। जितने दायरे उनके लिए इन्होंने तय किए हैं, उतने में ही वह अपनी जिंदगी की खुशियां तलाश रही हों। अगर वह इससे आगे बढ़ती हैं, तो अब इन लोगों...

एक वेश्या हूँ मेरी कहानी सुनेंगे आप ?

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अनिल अनूप  आप मुझे किसी भी नाम से बुला सकते हैं (रंडी या वेश्या), क्योंकि समाज में मुझे कभी सम्मानित नजर से नहीं देखा। हमारे पास हर तरह के कस्टमर आते हैं। इसलिए थोड़ी बहुत अंग्रेजी भी आती है मुझे। मैं मुंबई के करीब 15 किलोमीटर के दायरे में एक जिले में रहती हूं। आप रेड लाइट एरिया नियर मुंबई शब्द डालकर सर्च करेंगे तो मेरा यह इलाका आसानी से मिल जाएगा। यहां पर करीब 800 महिलाएं इसी धंधे में लगी हैं। यूं तो हम समाज से अलग-थलग रहते हैं पर हमें सब की खबर रहती है। सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर ईवीएम घोटाले तक… कश्मीर में पत्थरबाजी से लेकर नक्सली इलाके में औरतों के बलात्कार तक… आपके क्लीन कैरेक्टर वाले समाज में हमारे जीवन के बारे में जानने की बड़ी इच्छा होती है। जैसे कि हमारा अतीत क्या था? हम कैसे आए ? हमारी बातचीत का लहजा क्या है? हमारा पहनावा… हमारा अछूत सा जीवन… हमारे कस्टमर… और हमारे HIV मरीज होने का डर! सभी कुछ जानना चाहते हैं। कुछ लोगों को लगता है कि यह आसानी से पैसा कमाने का सबसे अच्छा तरीका है। लोगों को लगता है कि हम इस पेशे में स्वेच्छा से आए हैं। एक बात जानना चाहती हूं किसी भी स...

यहां से खरीदा माल किस्मत संवार देता है

अब सेक्स की मंडी में ग्राहकों की भीड़ केवल मौज मस्ती या शारीरिक सुख के लिए ही नहीं लगती। इस मंडी से खरीदा गया माल आफिस में तरक्की का मार्ग खोल देता है, चुनाव का टिकट दिला देता है, बड़े से बड़े टेंडर दिला देता है। यही कारण है कि अब सेक्स के बाजार में सिक्कों की चमक पहले से कहीं ज्यादा है और बड़ी तादाद में लड़कियां इस कारोबार की आ॓र आकर्षित हो रही हैं।एक जमाना था जब रेड लाइट एरिया से पकड़ी जाने वाली औरतें अपनी मजबूरियां बताती थीं, लेकिन अब पकड़ी जाने वाली अधिकतर लड़कियों के सामने मजबूरी नहीं बल्कि फाइव स्टार होटलों का ग्लैमर, सिक्कों की चमक और बढ़ती महत्वाकांक्षा है। कभी रेडलाइट एरिया और गली मोहल्लों में सिमटा यह धंधा अब बड़ी कोठियों, फार्म हाउस और बड़े होटलों तक पहुंच गया है। अब मसाज सेंटर या ब्यूटी पार्लर का भी इस्तेमाल इस धंधे में कम होता है ताकि इसमें शामिल लोगों की सामाजिक प्रतिष्ठा बरकरार रहे। रेड लाइट एरिया तक जाने में बदनामी का डर रहता है लेकिन आज के हाई प्रोफाइल सेक्स बाजार में कोई बदनामी नहीं, क्योंकि ग्राहक को मनचाही जगह पर मनचाहा माल उपलब्ध हो जाता है और किसी को कानों कान खबर तक नहीं ह...

भारत माता है या पिता

अनिल अनूप भारत में डेढ़ करोड़ वेश्याएं हैं यह संख्या कई देशों की कुल जनसंख्या से भी अधिक है। इस देश में गंगा (नदी) माता है, गाय (जानवर) माता है, धरती माता है, अच्छी बात है, ये हमारे प्रकृति के प्रति प्रेम और संवेदनशीलता को दर्शाता है पर असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा है कि कई औरतें वेश्या हैं जिनकी संख्या हजार दो हजार नहीं लगभग डेढ़ करोड़ है। आजादी के बाद दशक दर दशक भारत कथित तरक्की करता रहा, सरकारें बदलती रहीं, कथित रूप से महान नेता आते रहे, पर इनका विकास तो दूर इन्हे इस धंधे से मुक्त करने को कोई भी आगे नहीं आया। कानून बना दिया कि भारत में देह व्यापार गैरकानूनी है, इस कानून से किसी को फायदा हुआ तो बस पुलिस और कुछ दलालों का जिन्हे जब भी पैसे कमाना हुआ तो छापा मार के कुछ को गिरफ्तार किया, पैसे ऐंठे, और फिर उन्हे उनके सामर्थ्य पर छोड़ दिया इस चेतावनी के साथ कि इस धंधे को छोड़ कर कुछ और करो। वे महिलाएं भी कुछ दिन बाद थक हार के फिर उसी धंधे मे लौट आती हैं क्योंकि उनके पास कोई हुनर नहीं कि वे कुछ काम कर सकें जीविकोपार्जन के लिए और ऊपर से उनकी वेश्या की पहचान जिससे समाज उन्हे कभी सम्मान नहीं दे...

समाज के मुंह पर एक तमाचा है बालश्रम

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- अनिल अनूप माँ के आँचल तले संतुष्टि से सोने की चाहे दुनिया की कोई ताकत आए 'मैं महफूज़ हूँ'. पर बाल श्रमिक के लिए शायद ये सब सोचना भी फ़िज़ूल हैं. भोपाल के रेल्वे प्लेटफॉर्म पर पॉपकार्न बेचने वाला विनोद अब यह भी नहीं जानता कि उसका घर कहां है ? विनोद अभी सात साल का है और पिछले तीन सालों से तो वह इसी प्लेटफॉर्म या उसके आसपास ही रहता आया है. उसके साथ रहती है उसकी गरीबी, भूख, असहायता और इन सबसे हर रोज की जद्दोजहद करती उसकी ज़िंदगी. वह कभी प्लेटफॉर्म पर पॉपकार्न बेचता है, तो कभी रेल्वे कंपार्टमेंट में झाड़ू लगाता है. सोने का ठिकाना प्लेटफॉर्म, रिश्तेदारों के नाम संग फिरते चंद मासूम और शत्रुओं के नाम पर पुलिस और यह व्यवस्था. प्लेटफॉर्म पर रहने वाला अकेला विनोद नहीं हैं अपितु विनोद की तरह राज्य में हज़ारों बच्चे प्लेटफॉर्म को अपना आशियाना बनाये हुये हैं. अध्ययन कहता है कि भोपाल में रोजाना तीन नये बच्चे प्लेटफॉर्म पर आते हैं. कबाड़खाने में काम करने वाला जुनैद उम्र- 8 साल पिछले दो वर्षों से मेकेनिकी सीख रहा है. सुबह 8 बजे से गैरॉज खोलता है और रात 10 बजे अपने घर लौटता है. वह 14 घंटे काम कर...